चाक समय का चले निरंतर!
चाक समय का चले निरंतर!


गया पुरातन नूतन आया,हर्ष जगत में छाया है।
चाक समय का चले निरंतर!,ये कब रुकने पाया है!।
क्या खोया क्या पाया तूने? नहीं समझ में आएगा।
आने वाला समय सभी को,सही पक्ष दिखलाएगा।।
साथ समय के चला न जो भी,वह पाछे पछताया है।
चाक समय का चले निरंतर!,ये कब रुकने पाया है!।
गया पुरातन नूतन आया,हर्ष जगत में छाया है।
नये साल में नवल खुशी के, सुरभित पुष्प खिलाएँगे।
चल मिल जुलकर इन्द्रधनुष के,प्यारे रंग चुराएँगे।।
विश्व पटल भारत जय परचम,हमने मिल फहराया है!।
चाक समय का चले निरंतर!,ये कब रुकने पाया है!।
गया पुरातन नूतन आया,हर्ष जगत में छाया है।
मातृभूमि का रक्षण वंदन,यह संकल्प उठाएँ चल।
जल,वन,पशुधन सर्व संरक्षण,पर्यावरण महकाएँ हम।
आज तक का हिसाब लगालें,क्या खोया क्या पाया है।
चाक समय का चले निरंतर!,ये कब रुकने पाया है!।
गया पुरातन नूतन आया,हर्ष जगत में छाया है।