बुढ़ापे की सनक
बुढ़ापे की सनक
उम्र के बढ़ने के साथ
बढ़ती हुई
शारीरिक असमर्थता
कब रोक पाती है
मन की उड़ान
थम जंती है
सामर्थ्य
किन्तु
थमती नहीं
कामनाएँ
चाहतें
गुजरते वक्त के साथ
नहीं बिठा पाता
सामंजस्य
इसीलिये शायद
पाल लेता है
कोई न कोई सनक
अतृप्त मन ।
उम्र के बढ़ने के साथ
बढ़ती हुई
शारीरिक असमर्थता
कब रोक पाती है
मन की उड़ान
थम जंती है
सामर्थ्य
किन्तु
थमती नहीं
कामनाएँ
चाहतें
गुजरते वक्त के साथ
नहीं बिठा पाता
सामंजस्य
इसीलिये शायद
पाल लेता है
कोई न कोई सनक
अतृप्त मन ।