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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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बुनकर

बुनकर

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रिश्तों की किताब से, जैसे ही एक पन्ना निकला

बाकी पन्ने खुद-ब-खुद, ढीले होने लगे।

बांधी हुई डोर से छूटने लगे।

एक-एक कर बिखरने लगे।


बुनकर सभी रिश्तों को एक छत बनाई थी ।

मजबूती की मिसाल बने, ऐसी आरजू जगाई थी।

क्या पता था ,हवा का एक झोंका ,

भी सहन न कर पाएगी ।

देखते ही देखते तिनको में, बिखर जाएगी।


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