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Sangam Gupta

Drama

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Sangam Gupta

Drama

बुकमार्क

बुकमार्क

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आओ मिलो कभी,

किताबों की तंग गलियों में,

कि फ़ोन की सड़कों पर,

शोर-शराबा बहुत है !


शब्दों के झूलों पर बिताएँ,

कुछ ख़ामोशी के पल,

पन्नों की चिकनी,

खिसलपट्टी पर फिसलें चल !


सितारों को जोड़ कर,

बनाएँ तस्वीर कोई,

भूलकर,

कि कल सूरज के निकलते ही,

निकलना है रोज़ी रोटी के लिए,

देखें कि क्या सच में मर जाता है,

कोई भूखा रहकर !


बालकनी को लांघकर,

चलो चलें छत पर आज,

देखें क्या अब भी वहाँ,

पापड़ सूखता है कोई या झाकेँ,

बगल की छत पर,

कि क्या अब भी वहाँ,

अपने गीले बालों,

को सुलझाता है कोई !


छोड़कर विकिपीडिया की खबरें,

कान लगाकर सुनें,

बगल कि दीवारों पर,

क्या अब भी वहाँ पुराने !


किस्से दोहराता है कोई

सरकार साइड में,

विंडो खोलकर देखें बाहर

क्या अब भी धूप और बारिश,

के मिलने पर इंद्रधनुष,

उभर आता है कोई !


फुर्सत मिले जब,

मार्क ज़ुकरबर्ग के इन्वेंशन से,

तो मिलो फिर उन किताबों की गलियों में,

मैंने एक मोड़ पर,

बुकमार्क लगा कर छोड़ा है !


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