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Nitu Arora

Tragedy

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Nitu Arora

Tragedy

बुजुर्गो का साया

बुजुर्गो का साया

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खाना तो घर पर भी मिल सकता था

फिर भी बहुत दूर चले आए हैं,

सुकून को घर छोड़ कर

जाने क्या पाने इतनी दूर आए हैं।


अच्छा लगता है यहाँ लेकिन

अपनेपन का एहसास गाँव में छोड़ आए हैं,

जाने क्या पाने इतनी दूर आए हैं।


याद आती है वो सभी पुरानी बातें

वो बचपन के दिन

वो दादा दादी की कहानियां,

हम जिन्हें सुनकर बड़े हुए हैं

जाने क्या पाने इतनी दूर आए हैं।


शहरों में सब मिलता है बच्चों को,

पर नहीं मिलती वो संस्कार की बातें

जो हमारी नींव थी,

जिसके सहारे हम ज़िन्दगी के थपेड़े सहन कर पाए हैं,

जाने क्या पाने इतनी दूर आए हैं।


बहुत तीखी धूप है यहां

छाता तो मिलता है पर ,

माँ बाप के प्यार की छाया नहीं मिलती है।

सिर्फ गर्म हवा के साये हैं,

जाने क्या पाने इतनी दूर आए हैं।


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