बुहानी दुनिया
बुहानी दुनिया
चंचल उत्सुक मन बढ़ता रहा चढ़ता रहा
कदमों तले रौंद डाला माप डाला
सागर की गहराई, अंतरिक्ष का विस्तार
बनाया अति विध्वंसक हथियार
आजमाया अपनी ताकत बार बार
अनसुना किया प्राकृतिक चेतावनी हर बार
सुनामी, भूकंप, तूफान और महामारी
लघु - विकराल भेजता वो बारी - बारी
नैसर्गिक संकेत था हद पहचानने की
मिला था हमें बड़ी रूमानी दुनिया
क्यों बना रहे हो इसे बुहानी दुनिया
छोड़ अब जिद नारायण बन जाने की
मिली है इतनी खूबसूरत दुनिया
मनोहारी पर्वत, कलकल बहती नदियाँ
खाने को अन्न फल दूध और सब्जियाँ
नियंता ने गर छोड़ दिया जो नियंत्रण
मिलेगा कुटिल कोरोना का निमंत्रण
चाहे हो यूगांडा या हो अमेरिका
सबका मान मर्दन एक सरीखा
कोरोना काल से नया सबक सीख लो
प्रकृति से अनुचित और ज्यादा मत लो
खुद को खुद में मोड़ लो
नैसर्गिक प्रेम भाव सबसे जोड़ लो
बुहानी दुनिया से नाता तोड़ लो ।।