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Sunita Shanoo

Drama

3  

Sunita Shanoo

Drama

बुढ़ापा

बुढ़ापा

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बुढ़ापे में नहीं रह पाता बुढ़ापा

बन जाता है आदमी बच्चा सा ही

चीखता-चिल्लाता है ज़िद करता है

मचलता है बच्चों की तरह ही...


जरूरत पड़ने पर

दुलार दिया जाता है 

तो कभी गैर जरूरी समझ

फटकार दिया जाता है...


रूठता है मनाता है खुद को

मान-अपमान भूलता सा

एक उम्मीद में जीता है आदमी

कि शायद कभी...


उँगली थामने वाले हाथों को भी

मिल पायेगी एक उँगली की पकड़...।।


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