बुद्ध तुम अनन्य हो !
बुद्ध तुम अनन्य हो !


मोह-माया, प्रमाद से परे
अविचल, अटल
अविरक्त हो
बुद्ध तुम अनन्य हो।
इस सृष्टि में व्याप्त हो
किंतु अलौकिक
अनपेक्षित अदम्य हो
बुद्ध तुम अनन्य हो।
भाव निरपेक्ष हो कर भी
आत्मीय, अविस्मरणीय
अनंत हो
बुद्ध तुम अनन्य हो।
जड़-चेतन के बंध से मुक्त
अकम्पित,
अनाश्रित हो अर्हत
बुद्ध तुम अनन्य हो।
अस्वत तले ध्यानमग्न तुम
अकल्पनीय, अविश्वसनीय
अनुत्तरित हो
बुद्ध तुम अनन्य हो।
ना तुम्हारी कोई परिकल्पना
ना तुम्हारा कोई प्रत्युत्तर
ना तुम्हारा कोई परिष्कार
इस परिमंडल में व्याप्त तथागत,
बस एक अनादि शून्य हो
बुद्ध तुम अनन्य हो।