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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Classics

4  

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Classics

बसंत

बसंत

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खग करते कलरव मनभावन,

मौसम ऋतु बसंत का आया पावन।


बौर लदे झरवेरी और आम की डाली-डाली,

खेतों में फैली दूर तलक मखमल सी हरियाली।


बागों में महक रहे चंपा, चमेली, गेंदा, गुलाब, नीला-नीला आसमान हो रहा खुली किताब।


पीली-पीली सरसों फूली, योवनता चहुंओर,

ज्ञान की ज्योति जगाओ रे साथी, हो गई भोर।


बसंती हवा सर-सर-सरर करती देती संदेश,

आपस में मिलकर प्यार की ज्योति जलाओ, कहता 'मुकेश'।


मोर-मोरनी करें नृत्य, तितलियां पुष्पों से इठलातीं,

कोमल-कोमल, प्यारी-प्यारी शक्लें भला किसे न भातीं।


गेहूं की बालियां झूम-झूम कर गीत मनोहर गातीं,

भंवरों की मीठी-मीठी तानें, मन सबका हर लेतीं।


ओ रे आलसी जन ! तू अब तक क्यों सोया पड़ा,

एक नई सुबह का कर आलिंगन, चल हो जा खड़ा।


देती दस्तक बसंत द्वार पर, साथी करो स्वागतम,

मातु शारदे का वंदन-अभिनंदन, मिटे सर्व तम।


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