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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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बसन्त ऋतु

बसन्त ऋतु

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पुरवाई की हवा सुहाने लगी है

देखो बसंत ऋतु आने लगी है

खिलने लगी है, प्रकृति

सजने लगी है, प्रकृति


देखो प्रकृति दुल्हनिया होने लगी है

देखो बसंत ऋतु आने लगी है

हर मन प्रफुलित है

दिल गा रहा गीत है


देखो मंद मंद खुश्बू आने लगी है

वातावरण आज सुवासित है

सबकी नजरें भी लालायित है

देखो फूलों से महक आने लगी है


पुरवाई की हवा सुहाने लगी है

देखो बसंत ऋतु आने लगी है

मन मदन मयूर बन नाच रहा है

आज मनोकामना पूर्ण होने लगी है


देखो बसंत ऋतु आने लगी है

प्रेम की भाषा सुनाने लगी है

साज़ भी आज सुर के साथ है

शब्दों में सुरों की आवाजें आने लगी है


देखो बसंत ऋतु आने लगी है।


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