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Bishakha Kumari Saxena

Abstract

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Bishakha Kumari Saxena

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बसंत बहार

बसंत बहार

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आया बसंत बहार, उमंग बहार, 

चारों तरफ़ छाया, सुमन विहार॥

फूलों का कोमल कपोल, 

खिल गया देखो चहुँ ओर॥


हर तरफ़ पीली सरसों खिली, 

मौसम देने लगा सबको आभार॥

कोयलिया कूके, मोर नाचे, 

देख के मन मोरा हुआ सितार॥


पुष्पों के मुस्कान से धरा, 

पल्लवित होकर करती मनुहार॥

सतरंगी-सी होती हर दिशा, 

प्रफुल्लित होने का देता विचार॥


बगिया में तितलियों का हुआ आगमन, 

बिखरा कण-कण में नवरस आहार॥

चुनरी भी रंग गई धानी रंग में, 

नभ में उड़ेगी, अब फागुनी मल्हार॥


गीत गाओ, खुशियाँ मनाओ, 

हर तरफ़ छाया रँगीली कटार॥

उल्लास में दिल कितना झूम रहा, 

देखो कितना मदमस्त बसंत बहार॥ 


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