बस तुम्हें पता ना चले
बस तुम्हें पता ना चले


बस तुम्हें पता ना चले
कब तुम्हारे करीब आ जाऊँ।।
तुम्हें अपने बांहों में भरकर इस कदर सिमट जाऊँ
तुम्हारे उन सारे गुस्से को इक पल में निगल जाऊँ।।
बस तुम्हें पता ना चले
कब तुम्हारे करीब आ जाऊँ।।
तुम्हारी नादानियाँ समझ के इसे मैं भूल जाऊँ
धीरे से आके तुम्हारे सारे जज़्बात जगा जाऊँ।।
बस तुम्हें पता ना चले
कब तुम्हारे करीब आ जाऊँ।।
उन हर दर्द को तुम्हारे, ख़ूबसूरत पल में बुन जाऊँ
अपने प्यार से मैं, तुम्हारी तनहाइयाँ भुला जाऊँ।।
बस तुम्हें पता ना चले
कब तुम्हारे करीब आ जाऊँ।।
सारे रंजिश को भूल प्यार का गोता लगा जाऊँ
तुम्हारे गले के चुम्बन से उतरकर वो महफ़िल बना जाऊँ।।
बस तुम्हें पता ना चले
कब तुम्हारे करीब आ जाऊँ।।