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aazam nayyar

Abstract

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aazam nayyar

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बरसात

बरसात

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मुझपे ही मुहब्बत की बरसात नहीं होती 

जीवन में ऐसी कोई सौगात नहीं होती


आयी है दरारें रिश्तें में ही ऐसी उससे 

उससे ही मुहब्बत की वो बात नहीं होती


ओझल हुआ वो मेरी ऐसा निगाहों से है 

अब उससे मगर मेरी कोई मुलाकात नहीं होती


तो जंग नहीं होता मैं हारा मुहब्बत की 

मुझको ही मुहब्बत में जो मात नहीं होती 


फ़िर बात नहीं बढ़ती तकरार की जो उससे 

उसके नगर में मुझको जो रात नहीं होती


तो रोज़ मुहब्बत की होती उससे फ़िर बातें 

तल्ख़े ज़ुबां की उससे जो ये शुरुवात नहीं होती।

आज़म नैय्यर 


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