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बरखा अभिनंदन

बरखा अभिनंदन

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सावन सी इस झड़ी से

है तुम्हारा अभिनन्दन प्रिये!

खिलती कलियों की लड़ी से

है तुम्हारा अभिनन्दन प्रिये!


बहकते मस्त बहारो में,

सुलगते बदन के शोलों में,

पूर्वा की तीखी कटारों में,

है तुम्हारा सरस नमन प्रिये!


बादल बरसती वर्षा बूंदों में

आंखे तरसती बोझिल नींदों में

घनघोर घटा बारिश की रातों में

है तुम्हारा बस सपन प्रिये!


आ सजा दूं हाथों में हरी चूड़ियाँ

माथे पे लगा दूं सूरज सा बिन्दिया

नर्म घास की हरियाली में 

फूलों की झुकी डाली में

डूबकर तेरी निगाहों में

आ जी भर के बांहों में 

करूँ तुम्हारा आलिंगन प्रिये!


देखो आसमां कर रहा

कैसे धरा से मिलन

नहीं होता सब्र अब तो 

दिल में उठ रही अगन

धरा -गगन की सगाई में

मौसम की मस्त अंगड़ाई में

बना लो आँखों का काजल

बना लो दिल का दर्पण प्रिये !

घनघोर घटा बरसती रातों में

"प्रियम" का है अभिनन्दन प्रिये !



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