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Pankaj Priyam

Abstract

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Pankaj Priyam

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एक ख़त

एक ख़त

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एक खत ! जिसे कभी लिखा नहीं उसने

रोज बैठकर उसका जवाब लिखा मैंने।


एक खत ! जिसे कभी खोला नहीं उसने

रोज उसके दरवाजे पर छोड़ रखा मैंने।


एक खत ! जिसे कभी पढ़ा नहीं उसने

उसी में इश्क़ का इज़हार कर दिया मैंने।


एक खत!जिसे कभी लिखा नहीं मैंने।

उसका ही जवाब भेज दिया है उसने।


एक खत ! जिसे कभी लौटा दिया उसने

उसके ही दर टुकड़ो में फाड़ दिया मैंने।


एक खत ! जिसे पूरी जिंदगी लिखा मैंने

उसको जलाकर मौत लिख दिया उसने


एक खत ! जिसे कभी समझा नहीं उसने

एक खत ! जिसे कभी समझाया नहीं मैंने।


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