एक ख़त
एक ख़त
एक खत ! जिसे कभी लिखा नहीं उसने
रोज बैठकर उसका जवाब लिखा मैंने।
एक खत ! जिसे कभी खोला नहीं उसने
रोज उसके दरवाजे पर छोड़ रखा मैंने।
एक खत ! जिसे कभी पढ़ा नहीं उसने
उसी में इश्क़ का इज़हार कर दिया मैंने।
एक खत!जिसे कभी लिखा नहीं मैंने।
उसका ही जवाब भेज दिया है उसने।
एक खत ! जिसे कभी लौटा दिया उसने
उसके ही दर टुकड़ो में फाड़ दिया मैंने।
एक खत ! जिसे पूरी जिंदगी लिखा मैंने
उसको जलाकर मौत लिख दिया उसने
एक खत ! जिसे कभी समझा नहीं उसने
एक खत ! जिसे कभी समझाया नहीं मैंने।
