बोस - कुंडलियां
बोस - कुंडलियां


अपनी माटी के लिए,
लहू ही मांगा बोस।
शेरों की फौज में था,
आजादी का जोश।।
आजादी का जोश,
तिरंगा के दीवाने।
नेताजी की गरज,
मौत का डर ना जाने।।
क्या लिखे 'सिंधवाल',
रुकी पड़ी है लेखनी।
आजादी दे गए,
पर जान दे दी अपनी।।
अपनी माटी के लिए,
लहू ही मांगा बोस।
शेरों की फौज में था,
आजादी का जोश।।
आजादी का जोश,
तिरंगा के दीवाने।
नेताजी की गरज,
मौत का डर ना जाने।।
क्या लिखे 'सिंधवाल',
रुकी पड़ी है लेखनी।
आजादी दे गए,
पर जान दे दी अपनी।।