बोध
बोध
उन्होंने एक मर्तबा कहा था
क़ुदरत का शानदार गुण
करूणा है...करूणा
इसे तुम्हें आराम से समझना होगा
क्या...कभी कोशिश की है
इससे बात करने की
मन का डोरा-धागा जोड़ने की
ऑक्सिजन पर टैक्स लग जाए तो कैसा हो
बड़ी मुफ़्तखोरनी हो तुम
ये पूरी कायनात तुमको हासिल है
तिस ये तुम्हारा करिश्माई जिस्म
इस सब के बाद भी
अपने दुख की शिकायत को लेकर
घूमती हो, रोती हो और परेशान होती हो
तुम्हारे अंतर्मन के सैंकड़ों बारीक़
धागे इसी कुदरत से होकर आते हैं
वह निरंतर तुमसे संवाद में रहती है
तुम्हारी धड़कन में बहती है
याद रखना...
जिस बोध की तुम तलाश में हो
उसका रास्ता कुदरत से होकर
कुदरत तक ही जाता है...
ये इल्म अब तुम जान लो
अच्छी तरह से !