वक़्त जो एक औरत भी है
वक़्त जो एक औरत भी है
वक़्त में ठहरना सबसे अच्छा काम है
इस ठहराव में एक नर्म आराम है
होगा जब ज़िंदगी का मुक्कमल सफ़र
इसी नर्म आराम के क़िस्से याद राह पाएंगे
वक़्त एक बड़ी और मामूली गलतफहमी है
न यह चलता है न रुकता है और न ठहरता है
ये तो हम हैं आदम हौवा की ज़ात जो
चलती है रूकती है और ठहरती है
मैंने एक बार इस के बारे में सोचा था
वक़्त ग़र कोई औरत होती तो क्या होता
यह सख़्त न होता और एक मुलायम
रेशमी की चांदनी रंग की चादर होती
उसी चादर पर बैठकर दो प्रेमी
अपने विरह और मिलन के गीत गाते
वक़्त को सुनाते और वह सुनती
उन सदियों के जमा विलापों को भी
जिनसे इंसान होकर गुज़रा है
वक़्त जो अब औरत है सुनती धैर्य से
मिलाती जाती अपनी भी कथाएं
जो उसने किसी और को कभी नहीं सुनाई
ये औरतें अपने अंदर बहुत तहों को जमाती हैं
सिलवट दर सिलवट इनके मन के बिस्तर हैं।
एक सिलवट पर कुछ मिले हुए सदियों के फरेब हैं
दूसरे पर बंदिनी कथाएँ हैं, मद्धिम सुर वाली