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Poonam Chandralekha

Inspirational

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Poonam Chandralekha

Inspirational

बोध

बोध

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तन को सजाया जीवन भर

धोया, रगड़ा , खूब संवारा

खूब बनाया चमकदार

इत्र तेल चुपड़ तन को

बेहद खुशबूदार बनाया

पीली चमक को सोना समझा

पर, जीवन चमकाना भूल गया.

 

खूब कमाया, खूब बचाया

ऊँचा बैंक बैलंस बढ़ाया

इच्छाओं संग उड़ा फिरा

औरों का सुख-दुःख कहाँ दिखा?

यूँ मैं जिया, बस जीता रहा

पर, जीवन जीना भूल गया


आई जीवन की अंतिम घड़ी

तन से बिछड़ने की प्रथम घड़ी

रहा जतन से जिसे संजोता

कुछ भी साथ न जाना था  

सोच रहा मैं थका थका

मृत्यु शैया पर पड़ा पड़ा

बैंक का खाता भरा भरा

पर, कर्म का खाता खाली था 

किया न अर्पण परहित कुछ भी

मैंने जीवन किस अर्थ जिया?

हा! मैंने जीवन कहाँ जिया?

 

कानों में गूंजी मंद आवाज़

वक्त अभी भी मेरे पास

तन मिट्टी में मिल जाएगा

जल जल राख़ हो जाएगा 

पर, त्वचा, नेत्र, गुर्दे दान से

अस्त हुए किसी सूरज को

उदय नया मिल जाएगा

स्पंदित होगा यह जीवन

अन्य किसी जीवन के संग

मानव धर्म निभाने का

बस इक यही मूल मन्त्र

 

परहित जो जी जाएगा

मरकर अमर हो जाएगा

कर्म के ख़ाली खाते में

पुण्य जमा हो जाएगा ।


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