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आनंद कुमार

Abstract Inspirational

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आनंद कुमार

Abstract Inspirational

बनूं

बनूं

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अस्त होते सूरज की ढाल बनूं,

खड़ग बनूं या भाल बनूं।


नष्ट करने आए जो कोई,

तो मैं स्वयं महाकाल बनूं।


हो अगर घनघोर अंधेरा,

तो मैं जल के मशाल बनूं।


भटके जो कोई पथ,

तो मार्गदर्शक बन के साथ चलूं।


मिटने लगे जो अस्तित्व,

तो मैं संग्राम बनूं।


सिंह बन के हुंकार भरूँ,

भुजंग बन के फुंफकार भरुं।


आए जो कोई देश वैरी,

तो बाघनाक से प्राण हरूं।


बन जाए जो कोई मित्र-सखा,

तो जीवन भर उसके साथ चलूं।


हूं हिमनद मैं,

नदियों का मैं उत्थान करूं।


हो अज्ञानता,

तो मैं विज्ञान बनूं।


बाण बन के आघात करूं,

गदा बन के प्रघात करूँ ।


निःशब्द हो तो,

शब्दों की ताल बनूं।


हो रणभूमि तो,

प्रचंड प्रहार बनूँ।


घनघोर घटा छाए ,

तो वर्षा की मल्हार बनूं।


हो मरुभूमि,

तो नीर बन के प्राण भरूँ।


अस्त होते सूरज की ढाल बनूं,

खड़ग बनूं या भाल बनूं।



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