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बंदगी (०२)

बंदगी (०२)

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जब नूर नजर आए तो

नजर टिकती है,

जब प्यार बुलाये तो

बाहर रुकती है,

गुलों की खुशबू बिखेरे,

चमन वहाँ पर

जहाँ तेरी छाया, यार रुकती है।


बंदगी और जिंदगी प्यार ही तो है,

हर खुशी बस वही, दिलदार ही तो है;

है ये नेमत उस खुदा की, न बाजार बिकती है।

नफरत का सिला दुनिया को बस

खाक करे है,

जहाँ आदमी इंसानियत बर्बाद करे है

बस प्यार की शय ही

इसे मात करती है।


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