बलात्कार
बलात्कार
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पड़ौस में रहने वाली
मौहल्ले की जान
वो लड़की !
चिड़ियों सी फुदकती,
कोयल सी कूकती,
बारिशों सी छनकती
रहती थी जो !
शुष्क आँखें लिये
अब वो ...नाख़ून चबाती,
पैर के पंजे घिसती
दिन-रात आँसुओं से
रगड़- रगड़ के
कोई दाग मिटाती दिखती है !
उदासी की चौख़ट में
डर के पिटारे पर बैठी
सिमटती- सिकुड़ती रहती है,
प्रतिदिन- प्रतिपल !
खुसफुसाहट सुनी थी
मौहल्ले भर के चबूतरों पर-
चंद रोज पहले,
स्कूल से आते हुये
सूने उजाड़ रास्ते पर,
बिना नंबर प्लेट की जीप से-
कुछ कुलीन-अभिजात लोग
मलिन कर के फेंक गये थे उसे !
दूसरे पहर के बाद रात को ,
सुनसान गली में
चिन्दी-चिन्दी
तार-तार
घायल लथपथ अस्तित्व में !
अपना सूरज तलाशती
आरुषी की भोर नहीं हुई
अब तक !
पड़ौस में रहने वाली
मौहल्ले की जान
वो लड़की ।