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Preeti Raghav

Tragedy

0.7  

Preeti Raghav

Tragedy

बलात्कार

बलात्कार

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पड़ौस में रहने वाली

मौहल्ले की जान

वो लड़की !


चिड़ियों सी फुदकती,

कोयल सी कूकती,

बारिशों सी छनकती

रहती थी जो !


शुष्क आँखें लिये

अब वो ...नाख़ून चबाती,

पैर के पंजे घिसती

दिन-रात आँसुओं से

रगड़- रगड़ के

कोई दाग मिटाती दिखती है !


उदासी की चौख़ट में

डर के पिटारे पर बैठी

सिमटती- सिकुड़ती रहती है,

प्रतिदिन- प्रतिपल !


खुसफुसाहट सुनी थी

मौहल्ले भर के चबूतरों पर-

चंद रोज पहले,

स्कूल से आते हुये

सूने उजाड़ रास्ते पर,

बिना नंबर प्लेट की जीप से-

कुछ कुलीन-अभिजात लोग

मलिन कर के फेंक गये थे उसे !


दूसरे पहर के बाद रात को ,

सुनसान गली में

चिन्दी-चिन्दी

तार-तार

घायल लथपथ अस्तित्व में !


अपना सूरज तलाशती

आरुषी की भोर नहीं हुई

अब तक !

पड़ौस में रहने वाली

मौहल्ले की जान

वो लड़की ।


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