वचनबद्ध
वचनबद्ध
प्रतीक्षा करो तुम तब तक,
प्रकृति की अनुराग मंत्रणा के निमित्त
प्रेम कोंपलो को पुलकित,
हर्षित होने दो !
जब मन की प्रवाहिनी
कलकल बहेगी,
और चन्द्रमा की चाँदनी
झिलमिल- फिसलती,
रपटती दिखेगी,
उर्मियों पर खेलती हुई,
सरिता पहनेगी,
जब चाँदी की सी
चमचमाती दुशाला !
पल्लवों के संग,
चंचल पवन करेगा अठखेलियाँ,
शिखर चाँद का आव्हान कर
उसे जीमने के लिये बुलायेगा !
पावनी हरी धरा की
चादर में लिपटी
ऊँघती-अलसायी
खेतों की कुनमुनाती बालियों पर
जब गिरकर ओस की ठंडी बूँदें
जगायेंगी उन्हें !
पत्तियों के साज़ों पर
गुनगुना कर लतायें
बंदनवार बनकर झूमेंगी
और करें
गी नृत्य !
चकोरी लगायेगी पंचम स्वर
तब तुम प्रकृति की वो
मंत्रणा पूर्ण समझना !
प्रेम के मंगल कारज के लिये
कलरव संग भोर की मंजुषा,
दूर्वा और पुष्पों के महकते
रंगबिरंगे शगुन लायेंगे,
तब तुम आना
मेरे निकट शैलजा के तीरे !
प्रेमिल प्रतीक्षा में मगन
मैं आत्मा की आचमनी से,
नेह की गंगाजली लेकर
अंजुरी में भर कर अक्षत,
केशर संकल्प ले.. फिर
करूँगी स्वीकार तुम्हें !
उस क्षण चहुँदिश गूंजेगा ओंकार
प्रेम के वचनबद्ध आलिंगन में
तब जकड़ लूँगी तुम्हें,
अधरों से अधरों का
स्वीकृत कर पंचामृत
तुम्हें करूँगी आत्मसात,
प्रेमरत सौभाग्य की मधुर बेला में
प्रतीक्षा करो तुम तब तक।