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AMAN SINHA

Comedy

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AMAN SINHA

Comedy

बीवी से पंगा

बीवी से पंगा

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हम दोनों ही संग बैठे थे, हम एक दूजे से ऐंठे थे

मुँह ना कोई खोल रहा , आँखों आँखों में बोल रहा

बात जरा सी यही रही, मेज़ में प्याली पड़ी रही

कौन उठाएगा उसको इसी बात पे अपनी ठनी रही


पहले तो प्यार से समझाया, बातों से अपने बहलाया

दाल जो उसकी गली नहीं, फिर बड़ी ज़ोर से चिल्लाया

अब बातें चीख में बदल गयी, बेसुध फिर अपनी अकल हुई

एक दूजे के पूर्वजों तक फिर आरोपों की लहर गयी


मैं जानूं तेरे हर काम को, निकम्मों के खानदान को

जो अपने तन को तकलीफ ना दे, तुम जैसे हर इंसान को

तेरे भी घर की मर्यादा, मैं जानूं न कोई सीधा सादा

संस्कार ना तुझको दे पाए, लीचर का है तू शाहज़ादा


बात बढ़ी और खूब चली, बेहयाई की एक होड़ चली

कौन कितना नीचा ज्यादा है, ये समझाने की दौड़ चली

उसने अपना सीना ताना, जैसे मुझको दुर्बल जाना

सोच यहीं पर फिसल गयी, मैंने न उसको पहचाना


हाथों को अपने खोल दिया, फिर उसने हमला बोल दिया

मेरे दिल के ज़ज़्बातों को, अपने चाहत संग तोल दिया

प्याली अभी तक मेज़ पर थी, जैसे वो कोई सेज़ पर थी

फैली थी जीतनी भी गंद वहाँ, सारी मक्खी अब मौज़ में थी


फिर मेरा सर यूं घूम गया, पेअर ज़मीन से उखड गया

आँखे जो मैंने खोली तो, प्यार का सपना टूट गया

मैं "गिरा" था लेकिन वो गिरी नहीं, अपने प्राण से हिली नहीं

सर मेरा बीवी ने फोड़ा, आँखे पर उसकी गिली नहीं


बीत गए कुछ घंटे चार, लड़ाई हुई है बारम्बार

एक इंच भी प्याली हटी नहीं, आँखे उससे होती चार

एक आँख में काल घेरा था, लाल पूरा मेरा चेहरा था

होंठ कही से कटे हुए, खून फर्श में फैला था


फिर खुद को मैंने समझाया, बेलन को खुदा उठाया

उठाके प्याली रसोई में, फिर मैंने खुद ही पहुँचाया

बीवी से पंगा न लिया करो, जो भी बोले कर दिया करो

उसके हाथों पिट जाओ तुम, ऐसे काम कभी ना किया करो।


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