भूत, भविष्य और वर्तमान
भूत, भविष्य और वर्तमान
हमारा जीवन घूमता है भूत भविष्य वर्तमान के पहिए पर, जिसके इर्द-गिर्द पैनी नजर रखता है हमारे चिंतन का साफ दर्पण। पर विडंबना देखिए? हम जीते तो वर्तमान में, चिंता भविष्य की करते हैं, और शोक भूत का सोच- विचार कर करते हैं। कभी सोचते भी नहीं कि वर्तमान भी भूत होगा भविष्य भी आने वाले समय में वर्तमान होगा और फिर वो वर्तमान भी भूत हो जायेगा। मगर अफसोस कि हम ईमानदारी से वर्तमान में जी भी नहीं पा रहे हैं, और रोना भूत का रोते रहते हैं भविष्य की चिंता में दुबले हुए जाते हैं। हम यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वर्तमान में जिएं, भूत का ग़म या गर्व न करें भविष्य को लेकर बिल्कुल उतावले न हों। समय के साथ वर्तमान, भूत और भविष्य भी वर्तमान हो जायेगा यह चक्र निरंतर चलता ही आ रहा है और आगे भी सतत चलता ही जायेगा। किसी का भूत, किसी का वर्तमान और किसी का भविष्य होता है, कोई पाता, कोई खोता, तो कोई हँसता, कोई रोता है यही तो जीवन का चक्र है, जिसका हमें पता भी नहीं होता। वैसे भी भूत, भविष्य, वर्तमान किसी के इंतजार में भला कब रुकता है? फिर हमें आखिर इतना सदमा क्यों है? बेहतर है, भूत का धन्यवाद करें वर्तमान का खुलकर आनंद लें और भविष्य का स्वागत नव प्रभात सा करें। जीवन से कोई शिकवा, शिकायत न करें जीवन जिएँ, ढोयें नहीं, रोयें नहीं अपने वर्तमान से खुश रहें, जीवन से मित्रवत व्यवहार करें, भूत, भविष्य, वर्तमान के फेर में न फँसे सच मानिए जीवन आसान हो जाएगा जीने का वास्तविक आनंद तब ही अच्छे से आयेगा, भूत ही नहीं भविष्य के साथ वर्तमान भी खुद तो मुस्कराएगा और आपको भी हँसायेगा। सुधीर श्रीवास्तव
