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Sanjay Aswal

Tragedy

4.3  

Sanjay Aswal

Tragedy

भूख

भूख

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वो निकला है सड़कों पर

गालियों बाजारों में

दिन दोपहरी चिलचिलाती धूप में,

बदबू से भरा तन लिए

कांधे में थैला उठाए,

ढूंढ़ता है कूड़ा

इधर उधर नालियों से

बीनता है कूड़े के ढेरों से,

सिर्फ इस पापी पेट के लिए।

भूख को दबाए 

वो भटकता है यहां वहां,

अक्सर दुत्कारा जाता है

भगाया जाता है,

पर देखता है 

ललचाई नजरों से

नित नए सपने और

सपनों में अक्सर रोटी के कुछ टुकड़े,

फिर उसी रोटी को पाने के लिए

फिरता है दर बदर।

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भूख क्या होती है..?

ये उससे पूछो.....

पूछो जो कई दिनों से भूखा हो 

खाली पेट सड़कों में सोता हो....

पूछो किसी भिखारी से....

चौराहे में भीख मांगते

छोटे बच्चों से ......

भूखी माँओं से 

उनकी छातियां चूसते

उन अबोधों बिलखते बच्चों से......।

भूख का कोई धर्म नहीं

ना भूख का कोई मज़हब

भूख ईश्वर भी नहीं जानता,

भूख तो बस जानता है

चंद टुकड़े रोटियों के,

जो तृप्त कर दे

उनके पेट की आग को 

उस भूख को 

जिसके लिए 

मारा मारा वो फिरता है।


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