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Rupesh Kumar

Abstract

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Rupesh Kumar

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भूख

भूख

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कैसे कटेगे अब पहाड़ से ये दिन

जीवन की टुक

मन की भूख

तन की भूख

कहाँ गयी कोयल की कूक !


दिन हूए पल छीन

उपहार से ये दिन

कैसे कटेगे अब पहाड़ से ये दिन !


चरण अविराम के

रुक गए कैसे राम के !

सीता सरिखा मन गये क्यों दिन

बहार से ये दिन

कैसे कटेगे अब पहाड़ से ये दिन !


जेठ की तपन

मन की अगन

तन की जलन

लूट गया अगन छुआ गगन !


चली वह पश्चिमी नागिन

उजाड़ से ये दिन

कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन !


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