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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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बहुत है

बहुत है

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जिंदगी के इस दरिया में लहरें बहुत हैं

हमारी इस तैरती नैया पे पहरे बहुत हैं


फिर भी मैं जग-दरिया को पार करूँगा

हमारी इस नैया में कर्म पतवारे बहुत हैं


जग-दरिया में मिठास भरना चाहता हूं

पर इस वहशी दुनिया मे नफ़रतें बहुत हैं


जग के शूलों को खुश्बू देना चाहता हूं

लोगों की हम पे तिरछी नज़रें बहुत हैं


फिऱ भी अंगारों के ऊपर मैं चलूंगा,

मेरे अन्दर शबनम की बूंदे बहुत हैं!



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