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Archana Verma

Abstract

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Archana Verma

Abstract

बहुत देर

बहुत देर

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बहुत देर कर दी ज़िन्दगी तूने

मेरे दर पे आने में

हम तो कब से लगे थे

तुझे मनाने में


अब तो न वो प्यास है

न वो तलाश है मानों

खुद को पा लिए हमने

किसी के रूठ जाने में


बहुत देर कर दी ज़िन्दगी तूने

मेरे दर पे आने में

तेज़ हवा में जलाया चिराग

क्यों बार बार बुझ जाता है


जब की कोई कसर नहीं छोड़ी हमने

उसके आगे घेरा बनाने में

बहुत देर कर दी ज़िन्दगी तूने

मेरे दर पे आने में

मैं मायूस नहीं हूँ


बस तुझको समझा गया हूँ

ढूँढा किये तुझे हम औरों में

पर तू तो बैठी थी कब से

मेरे ही गरीबखाने में

बहुत देर कर दी ज़िन्दगी तूने

मेरे दर पे आने में।


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