बहुजन हिताय और सुखाय
बहुजन हिताय और सुखाय
सदा सुखमय हों ये अपने धरती व अंबर,
सुख की चाहत से भरा है ये सारा संसार ।
संतोषं परम सुखम्' है एक अमृत वाणी,
मानव जीवन करता इसका ही रस पान।
हर एक सुख से संतोष महात्म्य है।
मन को वश में करना सीखें जब हम ।
मानवता का सबमें भाव जगा कर,
एक दूजे से मिला चलना सीखें कदम ।
हर एक सुख से संतोष महात्म्य है।
मन को वश में करना सीखें जब हम ।
मानवता का सबमें भाव जगा कर,
एक दूजे से मिला चलना सीखें कदम ।
जीवन रूपी डगर बहुत कठिन है।
पर मेहनत सुख की आधार शिला है।
कुसंगति, कुकर्मों का परित्याग कराये।
जीवन शांत, सुखमय, उपयोगी बनाता।
धन और ऐश्वर्य के भाव बोध से मिलकर ,
प्रभु से दूरी सबकी बहुत बढ़ती जाती है।
लोभ,काम, क्रोध, जलन की भावना से,
सदाचार धर्म,सत्य ,मार्ग से भटक जाते हैं।
संतोष से ही मन सुमन निर्मल होता है ।
गुरुवाणी के रूप में जो इसे करें स्वीकार्य।
संतोष सुख में निमग्न होकर ही तो मानव,
सकारात्मक फल पाने में सफल होता है ।
इच्छा शक्ति को सदा परिमार्जित करता है ,
आत्म बल,संतुष्टिभाव मानव का धर्म है ।
'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' उक्ति से ही,
जन कल्याणकारी शांति पथ को पाता है ।
डगर बहुत कठिन है।
पर सुख की आधार शिला है।
कुसंगति, कुकर्मों का परित्याग कराये।
जीवन शांत, सुखमय, उपयोगी बनाता।
धन और ऐश्वर्य के भाव बोध से,
प्रभु से दूरी बढ़ती जाती है।
लोभ,काम, क्रोध की भावना से,
धर्म,सत्य ,मार्ग से भटक जाते हैं।
संतोष से ही मन सुमन निर्मल होता।
गुरुवाणी के रूप में करें स्वीकार्य।
संतोष सुख में निमग्न होकर मानव,
सकारात्मक फल पाने में सफल होता।
इच्छा शक्ति को परिमार्जित करना,
आत्म बल,संतुष्टिभाव मानव का धर्म।
'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' से ही,
जनकल्याणकारी शांति पथ को पाता।
