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usha shamindra

Inspirational

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usha shamindra

Inspirational

भीतर

भीतर

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चलो भीतर चलें

बहुत देख ली

येे बाहर की दुनिया

झूूठ फरेब 

धोखाधड़ी

और बनावट 

की दुनिया ।


यहां तो 

परेशाान हैैं

आग पानी आकाश धरती हवा भी 

सभी को कलुुषित किया

 सर्वोत्तम कृति ने


वनों को काटा,

धरा को खोदा,

छलनी किया  

नदी नाले तालाब को दूषित किया

भेद दिया आकाश का सुरक्षा कवच भी।


बिखरा दिया अंतरिक्ष में

अनुसंधान का कूड़ा।


अब यहां देवालयों में देव नहीं बसते

फूूल नहीं खिलते

पेेड़़ नहीं झूमते

अब नील निरभ्र व्योम कहांं ?


यहां तो पसर गयेे हैं 

कंक्रीट के  दानव 

आदमियों का समुद्र

प्लास्टिक का साम्राज्य 


हवा में ज़हर घोल 

ठन्डी हवा का पर्याय

मात्र ए सी।

कृृृृत्रिमता के केबिन मेंं

आत्मा का गला घोटती

प्रगतिशीलता।


चलो भीतर चलें

वहां सबका सब वैसा है आज भी

वहां फूल खिलते हैं 

ख़ुशबू बिखेरते भी।


पक्षी चहचहाते हैं

वृृक्ष झूमते भी।

पसरी हरियाली

नीला आकाश भी।


चांद पूरा दिखे

सूूूरज चमकता भी।

वहां से नहीं जाता बचपन

यौवन की उमंग भी।


बहुत आनंद 

ढेर सा सुकून भी 

चलो भीतर चलें

बाहर दौड़ते पांव मोड़ें

कुुलाचे भरें 

बाकी के रास्ते

भीतर ही भीतर तय करें।


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