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मिलिन्द खटावकर

Romance

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मिलिन्द खटावकर

Romance

भीगे शब्द

भीगे शब्द

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भीगे लम्हों की याद आयी

भीगे थे शब्द मेरे उस पल

लिखे जब कागज़ पर मैंने,

फट गया वो कोरा कागज़।

मन भी भीग सा गया था,

किसी कोने में नादान सा,

वो प्यार अकेला खड़ा था

ये बरसात कुछ अजब सी,

भीतर ही हो रही थी कहीं,

बाहर तो सब कुछ सूखा था।


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