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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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भेड़चाल

भेड़चाल

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हर तरफ आजकल भेड़चाल लगी है

बेचारी भेड़ की सांसे ही रुकने लगी है


एक कुंए में गिरा,हजार पीछे आ गये,

आज अजीबोगरीब शराफ़त लगी है


जिसे देखो उसके मन में ईर्ष्या पली है

हर तरफ आजकल भेड़चाल लगी है


भांग आज पूरे ही कुएं में घुली हुई है

भेड़ें हर घर,शहर में मनुष्य हो चली है


बहुत ही कम शख़्स इससे बच पाते है,

अधिकतर की रूह ही भेड़ हो चली है


हर तरफ आजकल भेड़चाल लगी है

शीशे में आज परछाईयां बदल गई है


तू भेड़चाल से बच निकलना साखी,

भेड़चाल से होती है सदा ही हानि


भेड़चाल की बलि से बगिया खिली है

अपनी चाल से ही हमे मंजिल मिली है!




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