भार
भार
अपने ही शब्दों को कर हल्का
डिग्री से भार बढ़ाना पड़ता है।
नैतिकता तब कहाँ रहेगी
जब धन से तुल जाना पड़ता है।
वो कहती थी- सच ही बोलो
वो कहती थी- बोलो तो तोलो।
रुपयों से बड़कर इंसान था कहा
वो कहती थी- हर बार न बोलो।
हमें बोल का मोल न आया
वाणी की देवी से क्या पाया ?
आखिर तुल गए बोल देवी के
कमा के ही तो खाना पड़ता है।
जो मैं कहता- ज्ञान बाटूँगा,
दिखाते पिता फीस की रसीदें।
जो मैं कहता- बुद्ध बनूँगा,
शिक्षक तक मेरे थे हँसते।
जब पढ़ने का अर्थ है अर्थ ही
ज्ञान बनेगा तो अनर्थ ही।
बनी पदार्थ आज है शिक्षा
संग धार के बह जाना पड़ता है।
