भाग्य
भाग्य
देख कर अपनी गति
निज भाग्य पर इतराता है
रे मनुज कितना नादान तू
भाग्यलेख कहां समझ पाता है
जो आज तेरा भाग्य है
कर्म तेरा वो कल का था
आज का कर्म ही तो
कल भाग्य होगा तेरा
तो संभल जा ना भूल कर
निज कर्म पर तू ध्यान लगा
स्वार्थ रहित हो प्रेम कर
मनुज धर्म को ध्येय बना।