भागदौड़
भागदौड़


भागदौड़ बस भागदौड़,
यहाँ भी दौड़,वहाँ भी दौड़
विचारों की भी भागदौड़,
न मन शांत,न विचार ही शांत,
जिसे देखो वो अशांत,
न है दोस्त,न है होश,
खुद में ही सब मदहोश,
न समझे कोई दोस्त का अर्थ,
प्रेम भी हुआ यहाँ बेअर्थ,
हाय हाय कैसी बदहाली,
ये हमने खुद कर डाली,
उम्र से हारे,बने उम्रदराज,
भूले सब जीवन के राज,
कहाँ गयी प्रेम की भाषा,
दोस्ती की वो परिभाषा,
मन की भाषा जाने कौन,
नैनो की भाषा समझे कौन,
कितनी ज्यादा दिलो की दूरी,
हाय हाय कैसी ये मजबूरी,
मशीन युग मे हुए मशीन,
बनाया खुद को तमाशबीन,
दोस्त जो समझे बस दिल बातें
प्रेम जो अंतस निर्मल बना दे,
आओ खोजे जरा वो भी प्रेम,
जगा दे कण कण में प्रेम,
खुद से ही बस हमे मिला दे,
वापस हमें मानव बना दे,
वापस हमें मानव बना दे।।