बेज़ुबान
बेज़ुबान
बचपन था इसलिए सोचते थे
माँ ऐसा क्यूँ करती है
कुछ पूछो तो बोलती थी
बेटा ये बेज़ुबान हैं
इनके कौन सी माँ बैठी है
जो इनको खाना देगी..
तब कुछ समझ नहीं आता था
लेकिन आज इतने सालों बाद
न जाने कब मैं भी अपनी माँ जैसी
बन गई पता ही नहीं चला...
अब मेरी भी दिनचर्या मेरी माँ की
तरह ही हो गई है
सुबह उठकर दैनिक कार्यों
से निवृत्त हो ही पाती हूँ
तब तक गौ माता
घर के दरवाजे पर प्रकट हो जाती हैं..
मेरा समय इधर उधर हो जाए
पर वो आकर अपनी पहली रोटी
का हक़ मुझे याद दिलाना नहीं भूलती है..
फिर मुझे अपनी माँ की बात
याद आ जाती है
और जाने न जाने यकीन भी हो चला है
वो सच ही कहती थीं
बेटा ये बेज़ुबान है
इनके कौन सी माँ बैठी है..
गाय की रोटी देकर ही चुकी थी
कि कुत्ता अपने नन्हे मुन्ने बच्चों
के साथ गेट के टकरा कर मुझे
अपनी उपस्थिति का अहसास दिला रहे थे
माँ कहती थी
बेटा इनको नहीं पता है
कि पेट भरने के लिए काम करना
पड़ता है
ये नहीं जानते हैं कि
रोटी भी पैसा दे कर ही मिलती है..
अब मैंने उनके लिए रोटी बनाई
और उसके बच्चों को कटोरा भर
दूध रख दिया
गेट खोल कुत्ते के छोटे छोटे बच्चे
अंदर आये और लपलपा कर
पूरा कटोरा खाली कर गए...
इतना कर ही पाई थी तब तक ध्यान
आया कि छत पर चिड़िया ची-ची
कर कर मुझे याद दिला रही थी
कि हम पंछियों के घर-द्वार
नहीं होते,
हम तुम्हारे दाने पानी पर
निर्भर रहते हैं
अभी ऊपर जाकर अनाज
के दाने बिखेरे ही थे
कि पूरा का पूरा झुण्ड
टूट पड़ा उसके ऊपर
और साथ ही रखा था मैंने
मिट्टी के चौड़े बर्तन में पानी..
अभी इतना करके ही चुकी थी
कि अचानक चींटियों का झुण्ड
दिखाई दिया
अरे माँ इनको भी तो पंजीरी
बना कर रखती थी
चींटी तो वैसे भी बहुत
मेहनत करती है
फिर उसके बिल के आस पास
मैंने भी पंजीरी बिखेर दी..
माँ सच कहती थीं
सच में इनकी माँ इनको
रोटी बना कर नहीं दे सकती
ये नहीं जानते कि रोटी भी
पैसे से आती है
ये बेजुबान होते हुए भी बहुत हो
समझदार होते हैं..!!