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बेटियां

बेटियां

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वो तो खर-पतवार जैसे उग ही जाती बेटियां

पत्थरो-दीवार जैसे उग ही जाती बेटियां

अनकहे आसार जैसे उग ही जाती बेटियां

हैं बहुत लाचार, कैसे उग ही जाती बेटियां

ऐसे बारम्बार कैसे उग ही जाती बेटियां?

माँँ की गुड़िया

और पापा की परी हैं बेटियां

जान से ज्यादा,

अरी प्यारी बड़ी हैं बेटियां


ज़िंदगी से ज़िंदगी भर,

पर लड़ी हैं बेटियां

आज घर - घर में न जाने क्यों

डरी हैं बेटियां

किस तरह की मौत ?

क्यों इतनी मरी हैं बेटियां ?


रातरानी की महकती सी कली हैं बेटियां

रौशनी घर की,

वो सबकी लाड़ली हैं बेटियां

आसमां तक कल्पना - सी

उड़ चली हैं बेटियां

पर अभी तक हर कदम

जाती छली हैं बेटियां


दूध क्या, वह छाछ तक से

मुंहजली हैं बेटियां

बेटियां चंडी हैं,

दुर्गा और सीता बेटियां

बेटियां ज्योति हैं,

गुड़िया और दिव्या बेटियां

तुम धरा अफरोज़ और इरफ़ान से खाली करो

जी सकें फिर आसिफा और नैन्सी - सी बेटियां

जी सकें प्रियदर्शिनी,

सबकी ख़ुशी - सी बेटियां।




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