बेटी
बेटी
पापा कि लाडली माँ कि प्यारी बिटिया।
दुनिया को सजाती
अपने गम को छिपाती।
खुद के खुशी से पहले
परिवार को हँसाती।
अपने कम उम्र से ही
बेटी आत्मनिर्भर हो जाती।
माँ का बोझ हल्का कर
हर काम को खुद निपटाती।
हो मौसम जैसा भी
परिवार को गरम गरम खिलाती।
भाई और पापा के कपड़े
अपना हाथ घिस चमकाती।
बंध कर बंधन के जंजीरों मे,
अपना हौसला नही खोती,
रहे मुसीबत जैसा भी,
स्वयं और परिवारो के रक्षा को
तलवार, कलम चलाना सिख जाती।
उत्पत्ति से आजादी तक
बेटी ने दिया खूब
त्याग और बलिदान।
बेटी के आगे तो
दुनिया भी है कम।
काली, दुर्गा, सरस्वती का
अवतार बेटी।
जंग मे जीत का
ऐलान बेटी।
फिर अपने भारत मे
सबसे ज्यादा क्यों असुरक्षित है बेटी?