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Dr pratap Mohan Bhartiya Bhartiya

Abstract

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Dr pratap Mohan Bhartiya Bhartiya

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बेटी की विदाई

बेटी की विदाई

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जब बेटी की

विदाई का अवसर

आता है

माँ बाप की आँखों में

आँसू और दिल

भर आता है

   

बेटी है

पराया धन

इसे छोड़ना

पड़ता है

घर एक दिन

 

बेटी की विदाई

की परंपरा

सदियों से 

चली आयी है

राजा हो या रंक

किसी ने बेटी

अपने घर नहीं बिठायी है

   

आज बिदाई में

बेटियां नहीं रोती है

क्योंकि वो

अपने जीवन साथी से

पूर्व परिचित होती है

   

कैसा है दुनिया का दस्तूर

कि हम

अपने कलेजे के टुकड़े

को दूसरे को

सौंप देते हैं

अपनी बेटी को

परायो को सौप देते है


एक घर छोड़कर

दुसरा घर

होता है बसाना

हमेशा से ये परम्परा

निभाता आ रहा है जमाना।


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