बेटी की पुकार
बेटी की पुकार
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बेटी कहे चीख के किसी दरिन्दे ने उसकी भावनाओं को मारा है
अपनी नोची सूरत और भक्ति की मूरत बेटी ने अपनो को पुकारा है।।
गंदी सोच लिये कोई लूट कर मेरी इज्जत को वो शहंशाह बना बैठा है।
लुट गयी इंसानियत खो गया है जमीर, लावारिस कोई सड़कों पर पड़ा है।।
लहू - लुहान जिस्म रग रग सैलाब की तरह आज बहता रहा
हर कतरा कतरा बचाओ मुझे बस यही तो सबको कहता रहा।।
मैं तो न बची मेरी उसकी ख्वाहिशें भी अब दम तोड़ रही।
सब देख तमाशा बर्बादी का अब ये दुनिया भी मुंह मोड़ रही।
अब इंसाफ दिला दो न इस बेटी की इज्जत का मोल चुका दो
बेटी के इस जन्म को अपनाकर मेरा जीवन सार्थक कर दो।