जीवन की दौड़
जीवन की दौड़
जीवन की दौड़ जाने कहां
ले जायेगी।
हर पल यह अपने अलग रंग
दिखायेगी।।
आज जब रूक कर देखती हूं
खुद को।
देखती हूं मैं पीछे छूटे अपनों के
साथ को।।
पैसों के पीछे भागते हुये अपने
खो से गये हैं।
ये जीवन की दौड़ में अपनों के
बीच सब तन्हा हैं।।
मां-बाप के पास समय नहीं होता था अपने बच्चों के लिये ।
आज वे ही बच्चों से दो बोल सुनने को तरस जाते हैं।।
जीवन के साथ चलते हुये समय को भूल गये सब।
आज उम्र के इस पड़ाव में छुट गया है पीछे सब।।
जीवन की दौड़ अतिरिक्त पैसा और अपनी शौहरत।
दौड़ रहे जीवन संवारने के लिये सभी मौत आने तक।।