बेरोजगारी
बेरोजगारी
मजलूमों के दर्द और आंसू दिखाई नहीं देते ,
उनके पेट की कड़कड़ाहट, किसी को सुनाई नहीं देते।
हम तो बहुत बना लेते है ऊँची - ऊँची महलें
उन महलों में दबी उन मासूमो की सिसकियाँ भी ,
किसी को तन्हाई नहीं देते।।
अच्छी-अच्छी डिग्रियां पाने वालों के ऊपर ,
जब बेरोजगारी की छाया पड़ जाती है।
उनकी सारी उम्र ,रोटी की त्रिज्या और चावल का भार,
ज्ञात करने में ही बीत जाती है।।
दबकर रह जाती है ,उन मजदूरों की आवाजे ,
जो दूसरों के लिए सुन्दर आशियाना बनाते है।
मजबूर है ओ किसान आत्महत्या करने पर ,
जो जीने के आधार फसल को उगाते हैं।।
उन्ही की बनाई इमारतों में ,एक छोटा सा रूम नहीं मिलता ,
उन्हें सिर्फ एक रात बिताने को।
कड़ी धूप और मेघों की गर्जन में ,हड्डी तोड़ परिश्रम कर ,
धरती का सीना चीरकर ,सोना उगाते हैं ,
उन्हें एक दाना नसीब नहीं होता पेट की ज्वाला मिटाने को।।
ऐ दुनिया बनाने वाले मैं तुझसे पुछता हूँ ,
तू इतना गजब का खेल क्यों रचाता है।
सबके पेटो को भरने वाला इस दुनिया में ,
भूखे पेट क्यों मर जाता है ?
करता हूँ गुजारिश तुझसे ,
उन्हें थोड़ी सी खुशी उधार तो दे दे।
ज्यादा कुछ नहीं मांगता ,
बस जीने का आधार तो दे दे।।