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SRI HARSHA PEESAPATI VENKATA PHANI DURGA

Romance

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SRI HARSHA PEESAPATI VENKATA PHANI DURGA

Romance

बेकसूर

बेकसूर

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बेकसूर बेकसूर

बेकसूर बेकसूर


चाहत में लिपटा मैं

आहट भी ना हुई है

ख़त्म हो गया मैं

पता अभी चला है


बेकसूर बेकसूर 

बेकसूर हूँ मैं


तड़पती भी ये बाहें है

भीगी से निगाहें है

दूरी ये डरती है

पता अभी चला है


बेकसूर...


सुलझा सा तन है

मोहब्बत का ये ज़ख्म है

उम्र के इस पड़ाव में

जवानी का ये सवाल है


बेकसूर...


औरत की उन निगाहों में

कम ही कहानियों में 

मस्त मस्त उस माहौल में

सुलगती चाहत है


आशिक़ भी आशिक़ी भूल जाए

ऐसी शर्म छिपी है चेहरो में

जो जलाए, जलाए जताए


ये कमबख्त जवानी

जैसे जंगल में चाँदनी

शांत पर जलती जलती

पर तेहरा मैं बेकसूर...


मैं कल बेकसूर

आज बेकसूर

पर कल - नहीं बेकसूर

चलती जवानी की अमानत

संभालूँगा पूरा पूरा


सवालों के जवाब नहीं

कोई सवाल करने वाला नहीं

ऐसा नहीं की हम औरत के किसी

दहलीज़ के दास दासी बन जाए 


गल गल के 

प्यास से जल जल के

तन बदन सूख रहा है 

अब मैं कसूर करना चाहता हूँ

अब मैं कसूर करना चाहता हूँ



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