बेजुबान सच
बेजुबान सच
मत सोचना माँ मैं
निकलूं घर से या
जब जाऊँ काम पर,
लौट कर आऊँगी.
क्योंकि तेरे आँचल में,
तेरे इस जहान में,
कुछ हैवान हैं बैठे,
नारी को जो नारी न समझे,
भूख इनकी हवस सी,
दरिंदगी हैवत भरी,
जो तोलते हैं हमको,
जिंदगी के मकाम पर.
आफिस हो या सड़क,
सब असुरक्षित है,
हमारे लिए तो बंद है
सब दरवाजे इस लोक के,
कोई नही बढ़ता,
हमें बचाने को,
सब मोड़ लेते पीठ,
हमसे इस जहान में.
जब होता हादसा,
सब घरों से निकलते,
भाषण हैं देते
और करते कैंडल मार्च रे !
