बेचैनियाँ
बेचैनियाँ
ना जाने येबेचैनियाँँ कैसी है,
हर रोज तेरे दीदार को आँखे तकती है !
ना जाने ये बेचैनियाँ कैसी है,
जो एक दिन भी कभी ये तेरी एक झलक ना पाए,
तो ये दिल बेचैन सा हो जाता है,
ये एक नया सा एहसास दिल मे जगाता है !
ना जाने ये बेचैनियाँ कैसी है,
जो हर पल दिल तुझे याद करता है !
बस तुझसे मिलने की फरियाद करता है !!

