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बदलता देश

बदलता देश

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दबी आवाज़ में बिलख रहा है

यूँ ही नहीं ये राष्ट्र बदल रहा है


चुनावी दांव खेले जा रहे है

महज़ वादे किए जा रहे है

ख़्वाब तो कुछ और दिखाए गए थे

हकीकत में कुछ और ही निकल रहा है

यूँ ही नहीं ये राष्ट्र बदल रहा है


युवा काम को भटक रहे है

पेट भरने को लुटेरे बन रहे है

बीज तो कुछ और बोये गए थे

ये कौन सा पौधा पनप रहा है

यूँ ही नहीं ये राष्ट्र बदल रहा है


कागजी योजनाएं बहुत आ रही है

दो पैरों को बैसाखी दी जा रही है

भूखों को मंगल पर मकान दिये गए थे

गिरते गिरते, मगर संभल रहा है

यूँ ही नहीं ये राष्ट्र बदल रहा है


मज़हब पर सवाल किए जा रहे है

दिलों में दरार किये जा रहे है

फिर काफिलों में नारे लगवाए गए थे

धीरे धीरे मगर सब समझ रहा है

यूँ ही नहीं ये राष्ट्र बदल रहा है


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