बदलाव
बदलाव
जब से जाना है जमाने के दांव पेच
न कोई अजनबी लगता है न कोई लगता अनजाना
बेहतर है छोड़ दे गुत्थियों को सुलझाए बिना
सुलझाने की कोशिश उलझाती कहीं ज्यादा है
दूसरों को नासमझ समझने वालों की लगी लंबी कतार है
आया है ऐसा दौर कि तुम खुद से कभी मिलते नहीं
भेड़ चाल की भीड़ बन चल देते हो उस सफर में मंजिल तक
जो राह कभी पहुंचती ही नहीं
माना यह मंजर है भयावह हवा में जहर घुला है
सोच पर लग गई है जंग तन बीमार हुआ जा रहा है
खुद से तुम्हें अब खुद ही जंग लड़नी है
मंजिल तक पहुंचने की राह नई ढूंढ निकालनी है
बदलाव उनमें बाद में पहले खुद में लानी है।