बढ़ते अत्याचार
बढ़ते अत्याचार
मन में ढेर अरमान लिए
बेटी तो पैदा कर लूं मैं,
हर वक्त दुनिया से हारी
अब कैसे धीरज धर लूं मैं।
आज तू बढ़ते अत्याचार देख
इक माँ की कोख उजाड़ देते हैं,
बेटे की लालसा में बेटी को
कोख में ही नष्ट करा देते हैं।
देख खुले में भेड़िए घूम रहे
कुछ नर पिशाच व्यभिचारी,
कानून का है ना उनको डर
आज छाई कैसी अंधियारी।
कुछ नपुंसक नर दानव बन
नारी पर कहर ढाते हैं,
करके अपनी हवस पूरी
अंधेरी रातों में मार जाते हैं।
तड़पता है इक माँ का दिल,
सुनती जब बलात्कार की खबरें,
डरती हूं बाहर जाने से मैं
आज कैद चार-दीवारी के घर में।
दुनिया में कलयुग ऐसा छाया,
बेटी को जन्म देने से डरती मैं,
काश! आज कोख को पसार
कर पाती बेटी को अंदर मैं।
रहा घूम हवसी बेखौफ
जो भी यहां दरिंदा है,
आज बेटी रोती,जलती है,
पर खलनायक आज जिंदा है।
नारी जिस्म के लोभी यहां,
देश में भरे पड़े हैं मोदी जी,
खिलौना समझे नारी को,
ऐसा कानून बनाओ मोदी जी।
खिलौना समझे जो बेटी को
वो फांसी पर झूल सकें,
आधी रात को भी बेटियां
राहों पर आजादी से घूम सकें।