बचपन
बचपन
आज भी बचपन को कहीं जी आता हूँ में
कागज़ की कश्तियाँ कहीं पानी में तिरा आता हूँ मैं।
कटी पतंग को देख आज भी ललचा जाता हूँ मैं
लूट के उसे किसी बच्चे के हाथ में दे आता हूँ मैं।
आज भी बचपन को कहीं जी आता हूँ मैं
कांच के टुकड़ो पे पड़ती धूप से कहीं आज भी
चिलके चला आता हूँ मैं
आज भी बचपन को कहीं जी आता हूँ मैं।